उम्मीद

मुसाफिर की राह मे
मंजर कुछ बडा है इस तरह
पाँवो मे जूते है फिर भी काँटा चुभा हे इस तरह
ये विराना अंधकार और ठंडी हवाये चल रही कुछ इस तरह
हे उम्मीद की बसंत की बहार आयेगी इस बार कुछ इस तरह |

No comments:

Post a Comment

गुज़रे पल और आज का शोर

Analyser/Observer धीरज अपनी पुरानी डायरी के पन्ने पलट रहा था। पृष्ठ हल्के पीले पड़ गए थे और स्याही थोड़ी फीकी। आज की भाग-दौड़ वाली दुनिया से...