धीरज अपनी पुरानी डायरी के पन्ने पलट रहा था। पृष्ठ हल्के पीले पड़ गए थे और स्याही थोड़ी फीकी। आज की भाग-दौड़ वाली दुनिया से दूर, उसे उन दिनों की धीमी गति याद आ रही थी।
उसे याद आया, जब वह छोटा था, तो उसने अपनी नानी को हाथ से बुने ऊन से स्वेटर बनाते देखा था। हर फंदा धैर्य और प्यार से बुना जाता था।
डिलीवरी पर ‘Express’ ऑप्शन चुनता है। सब कुछ तुरंत चाहिए, रेडीमेड। बुनाई का हुनर कहीं पीछे छूट गया है, उसकी जगह मशीन की तेज़ आवाज़ ने ले ली है।
तभी उसकी मेज पर रखा टैबलेट चमका। एक दोस्त का वीडियो कॉल। वह तुरंत मुस्कुराया और स्वीकार कर लिया। यह भी एक जादू था—हज़ारों मील दूर बैठे दोस्त का चेहरा आँखों के सामने।
उसने महसूस किया: पुराने दिनों की ख़ूबसूरती इंतज़ार में थी, जो चीज़ों को क़ीमती बनाती थी। और नए दिनों का चमत्कार यह है कि वह दूरियों को मिटा देता है।
"मैंने कभी ख़तों के न आने का दर्द सहा है," उसने सोचा। "और मैंने वीडियो कॉल पर तुरंत हाल-चाल पूछने की राहत भी महसूस की है। दोनों अनुभवों का अपना महत्व है।"
उसने अपनी डायरी बंद कर दी और टैबलेट को भी नीचे रखा। उसने महसूस किया कि असली समस्या पुराने या नए दिन नहीं हैं, बल्कि यह है कि हम हर पल में पूरी तरह से मौजूद हैं या नहीं।
वह उठा और अपनी पसंदीदा पुरानी कॉफी मशीन से एक कप धीमी, खुशबूदार कॉफी बनाने चला गया। एक पुरानी आदत को नए दिन में जगह देना।
जब उसने गर्म कप अपने हाथों में लिया, तो उसे एहसास हुआ कि ज़िंदगी न तो केवल पिछली धीमी धुन है, न ही केवल आज का तेज़ संगीत। यह दोनों का एक सुंदर, संतुलित मिश्रण है।
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