आंखो मे भी कुछ आस रहती
नये सपने मै भी संजोता
बोली मे भी मिठास रहती
बालपने की हद तक जाता
जीवन मे भी साँस रहती
काश की उम्मीद आबाद रहती |
कलम उठाते ही भर आयी आंखे
घडा भर पीता फिर भी प्यास रहती |
नाकाबिलो को काबिल
हमने बनाया
ऊंचा उठाकर कुर्सी पर बिठाया
किस्मत बदलने की
इनसे आस लगाई
हर बार की तरह
उम्मीदे इस बार भी खाली हाथ आयी |
काश की उम्मीद आबाद रहती |
©Ashok Bamniya
काश की उम्मीद आबाद रहती
ReplyDeleteनकाबिबिलो को काबिल हमने बनाया
ऊंचा उठाकर कुर्सी पर बिठाया .....
उम्मीद इस बार भी खाली हाथ अाई ।
बहुत ही सार्थक रचना
धन्यवाद रितु जी
Deleteअच्छा लिखा है आपने।
ReplyDeleteअंतिम पंक्तियों में नेताओं पर कटाक्ष हुआ है। वाह! बेहतरीन।
आभार प्रकाश जी
Deleteबहुत बढ़िया....हार्दिक बधाई
ReplyDeleteबधाई के लिये धन्यवाद दीपशिखा जी
Deleteधन्यवाद श्रीमान
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