बेरोजगार

आंखो मे भी  कुछ आस रहती
नये सपने  मै भी संजोता
बोली मे भी  मिठास रहती
बालपने की  हद तक जाता 
जीवन मे भी  साँस रहती 
काश की उम्मीद आबाद रहती |



कलम उठाते  ही भर आयी आंखे

घडा भर पीता फिर भी प्यास रहती |



नाकाबिलो  को काबिल

हमने बनाया 
ऊंचा उठाकर  कुर्सी पर बिठाया 
किस्मत बदलने की
इनसे आस लगाई
हर बार की  तरह
उम्मीदे इस बार भी खाली हाथ आयी |



काश की उम्मीद आबाद रहती |

©Ashok Bamniya

7 comments:

  1. काश की उम्मीद आबाद रहती
    नकाबिबिलो को काबिल हमने बनाया
    ऊंचा उठाकर कुर्सी पर बिठाया .....
    उम्मीद इस बार भी खाली हाथ अाई ।
    बहुत ही सार्थक रचना

    ReplyDelete
  2. अच्छा लिखा है आपने।
    अंतिम पंक्तियों में नेताओं पर कटाक्ष हुआ है। वाह! बेहतरीन।

    ReplyDelete
  3. बहुत बढ़िया....हार्दिक बधाई

    ReplyDelete
    Replies
    1. बधाई के लिये धन्यवाद दीपशिखा जी

      Delete
  4. धन्यवाद श्रीमान

    ReplyDelete

Truth of Love

Analyser/Observer Love the one, who love the one.