दिन धुआ हो गये
राते भी काली है
उम्मीदे मेरे घर को चली आयी
पर मेरी जेब तो खाली है |
माँगकर सब तरफ देख लिया
सबकी आंखे एक सवाली है
क्या नही था तेरे पास
जो तेरी जेब आज खाली है |
समर्थन सुख मे सब गवाया
खुद ही लिखा
खुद ही मिटाया |
बहकावे ने आज से बेहतर
कल को बताया
वो हुए मालामाल
मै खाली हाथ घर को आया |
बात अब करता हु
जब गले तक आयी हे
बहकावे ने अपनी लंका डुबायी है |
पर्दे पर जो दिख रहा
तुम उसे ना मानना
जो अन्दर से सच्चा हो
उसे तुम जानना |
©Ashok Bamniya
बहुत ही सुंदर..👌👌👌
ReplyDeleteधन्यवाद जी
Deleteअच्छा है। टंकण पर ध्यान दें।
ReplyDeleteधन्यवाद जी . आगे से ध्यान दूँगा
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद अनिता जी
Deleteसटीक चिंतन प्रस्तुत करती अभिव्यक्ति। टंकण सम्बन्धी त्रुटियों को दुरस्त करेंगे तो रचना और निखर जायेगी। शुभकामनाऐं।
ReplyDeleteधन्यवाद रविन्द्र जी , आगे से और सुधार करूँगा
Deleteबहुत खूब!!
ReplyDeleteधन्यवाद शुभा जी
Deleteमाँगकर सब तरफ देख लिया
ReplyDeleteसबकी आंखे एक सवाली है
क्या नही था तेरे पास
जो तेरी जेब आज खाली है ....
बहुत ही सुंदर भावों से सजी रचना।
धन्यवाद सर आपके शब्द पढकर अच्छा लगा ..
Deleteधन्यवाद अभिलाषा जी
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