ईट , पत्थर ,रेत ,सीमेंट लाया
इन्हे मिलाकर किला बनाया
दीवारे रंगो से सँजायी
इन्हे देख लोगो कि आँखे चौंधियायी |
रूप्या पैसा इतना दिखाया
लोगो के बीच नाम कमाया
लोग करने लगे हमरी बडाई
हमहु बन गये सेठजी भाई |
लाल टीका माथे पर लगाया
मुँह मे मीठा पान दबाया
गुड की घर से कर दी विदाई
बाजार से शक्कर कि बोरी उठवायी |
मावा खुद ही हम खावे भाई
जग मे बाँटे खूब झुटाई |
गरीब संग फोटो खिचवाये
तब्हू ना हम सेल्फी किंग कहलवाये
दिखावे का हाथ बढावे भाई
पीठ पर लट्ठ चलावे भाई |
माल खुद ही हम दबावे भाई
हमहु बन गये सेठजी भाई |
भाषा में आँचलिकता का प्रभाव रोचक है। टंकण सम्बन्धी त्रुटियों को दुरुस्त कीजिये। बिन्दी को लेकर इतना उपेक्षा भाव क्यों ?
ReplyDeleteसुन्दर प्रतिक्रिया श्रीमान धन्यवाद आपका ..उपेक्षा भाव दूर करूँगा ..सुधार करूँगा
Deleteसमाज में हर तबके के लोग रहते है, सभी को अपना उल्लू सिधा करना होता है .....मन में रोस लिय, सुन्दर रचना
ReplyDeleteसही कहा आपने अनिता जी ..धन्यवाद
Deleteवाह!!बहुत खूब!!👍
ReplyDeleteधन्यवाद शुभा
Deleteआभार सर
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