सच क्या हैं
मेरा बचपना ही तो है।
वो छोटी सी मेज पर चढकर
खिडकी से बाहर झाँकना
वो किसी के आने की
आहट को ताकना।
गाँव का वो स्कूल
कक्षा मे बैठे
घण्टी बजने की बाट जोहना।
अपनी गली मे
कनचो की खूब बाजियाँ खेली मैंने
कही नये पुराने काँच के टुकडों को अपना बनाया
अपने कनचें पर मार खा
हाथ की कोहनियाँ भी खूब घीसी
ये भी एक सच ही तो हैं।
जवानी की दहलीज पर कदम रख
दिल टुटने पर बहुत रोया
भूल गया था
यहाँ तक आते आते
बचपन के अपने प्यार को
उसे भी तो रूलाया खूब था
खैर छोडो दुसरे की आँखो का पानी
कहा देखा जाता है।
ये तो परम सत्य हे
इस दुनिया का।
इससे आगे चला तो
मुझे मेरी उम्र का वो पडाव भी याद आया
जब माँ-बाप मेरे बुढ़े हो चुके थे
उनके धन का हिस्सा हमे मिल चुका था
वो हम सबके यहाँ मेहमान बने जा रहे थे
और हम उनसे पीछा छुडाना चाह रहे थे।
हाँ ये भी सच हैं
मेने यहाँ तो अपनो को भी नही छोडा
जीवन के सफर मे हर मोड पर
इन्सान बनने की
पुरे दिल से कोषिष की
पर क्या करे इन्सान की आजकल
फितरत ही कुछ ऐसी है।
ये भी एक सच हैं।
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मेरा बचपना ही तो है।
वो छोटी सी मेज पर चढकर
खिडकी से बाहर झाँकना
वो किसी के आने की
आहट को ताकना।
गाँव का वो स्कूल
कक्षा मे बैठे
घण्टी बजने की बाट जोहना।
अपनी गली मे
कनचो की खूब बाजियाँ खेली मैंने
कही नये पुराने काँच के टुकडों को अपना बनाया
अपने कनचें पर मार खा
हाथ की कोहनियाँ भी खूब घीसी
ये भी एक सच ही तो हैं।
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भूल गया था
यहाँ तक आते आते
बचपन के अपने प्यार को
उसे भी तो रूलाया खूब था
खैर छोडो दुसरे की आँखो का पानी
कहा देखा जाता है।
ये तो परम सत्य हे
इस दुनिया का।
इससे आगे चला तो
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जब माँ-बाप मेरे बुढ़े हो चुके थे
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वो हम सबके यहाँ मेहमान बने जा रहे थे
और हम उनसे पीछा छुडाना चाह रहे थे।
हाँ ये भी सच हैं
मेने यहाँ तो अपनो को भी नही छोडा
जीवन के सफर मे हर मोड पर
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बहुत संवेदनशील रचना आत्म स्वीकृति करती
ReplyDeleteसराहना के लिये धन्यवाद कुसुम जी ..
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