अब जब तुम आते नहीं
लोग गाते नहीं
गुनगुनाते नहीं
और महफ़िलो मे रंग भी नहीं चढ़ता
अब जो तुम मुस्कुराते नहीं
इठलाते नहीं
बलखाते नहीं
नाचते नहीं
नचाते नहीं
तो अब महफ़िलो मे रंग भी चढ़ता
हमसे बतियाते नहीं
सुनते भी नहीं
सुनाते भी नहीं
कहते भी नहीं
कहलवाते भी नहीं
तो अब महफ़िलो मे रंग भी नहीं चढ़ता
झूलते भी नहीं
झुलाते भी नहीं
सोते भी नहीं
सुलाते भी नहीं
रोते भी नहीं
रुलाते भी नहीं
तो अब महफ़िलो मे रंग भी नहीं चढ़ता |
बहुत खूब लिखा आप ने 👌👌👌
ReplyDeleteपर आप की कविता का रंग तो खूब चढा 😊
बहुत सरल पर सुन्दर रचना 👏👏👏
धन्यवाद नितु जी आपके सुंदर शब्दो के लिये अपना साथ युही बनाए रखे
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