कुछ पढा
कुछ लिखा
और बडी हुई मै
देखा जमाने को
टाँग मेरी खिचते
मुझे गिराने कि कोशिश
लाख हुई
पर तन कर
विरोध मे
खडी हुई मै
गैरो का क्या है
जो नही देखते
वो भी बोलते
शिकायत तो अपनो से है
जिन के साथ
पली बडी हुई मै
वो मेरी सोच जानते
मुझे अन्दर से
पहचानते
मुझे जिग्याषा है
मै खुद को जानु
अपने अन्दर कि
शक्ति को पहचानु
मेरा लक्ष्य
मेरा अभिमान है
जिसको मुझे पाना है
फर्क मुझे कुछ नही पडता
कौन दे रहा
मुझे क्या ताना है |
कुछ लिखा
और बडी हुई मै
देखा जमाने को
टाँग मेरी खिचते
मुझे गिराने कि कोशिश
लाख हुई
पर तन कर
विरोध मे
खडी हुई मै
गैरो का क्या है
जो नही देखते
वो भी बोलते
शिकायत तो अपनो से है
जिन के साथ
पली बडी हुई मै
वो मेरी सोच जानते
मुझे अन्दर से
पहचानते
मुझे जिग्याषा है
मै खुद को जानु
अपने अन्दर कि
शक्ति को पहचानु
मेरा लक्ष्य
मेरा अभिमान है
जिसको मुझे पाना है
फर्क मुझे कुछ नही पडता
कौन दे रहा
मुझे क्या ताना है |
वाह !!! लाजवाब ...👌👌👌
ReplyDeleteधन्यवाद नितु जी
Deleteबहुत ख़ूब ।।।
ReplyDeleteख़ुद ही खड़ा रहना होता है ... डटे रहना है ...
आभार digamber naswa ji
Deleteबहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteशुक्रिया अनिता जी
Deleteखूबसूरत रचना..
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआपको कुछ भी सुझाव देंना, मतलब सूर्य को दीप दिखाना। फिर भी हिम्मत करके कहने की कोशिश कर रहा हूँ, गलती को क्षमा कीजिएगा। कुछ टंकण त्रुटियाँ नज़र आईं हैं इस ख़ूबसूरत रचना में। कृपया अन्यथा न लें। सादर नमन🙏🙏🙏
ReplyDeleteधन्यवाद श्रीमान सुझाव देने के लिये| दुरस्त करने की कोशिश करूँगा | अपना प्रेम यूँही बनाये रखे |
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