कवि

कुछ कवि ऐसे होते है
जमाने की भीड़ मे
खूब हँसते है
अकेले मे
अंदर ही अंदर
खुद को
पढ-पढ कर रोते है |

हालात ए हिंसा
इनको हर जगह नजर आती है
कलम के सिपाही
कलम को बन्दूक बना
रात-रात नही सोते है |

कलम का लहू
अब किस पर चढता है
यहा तो बस अब
आडे-टेढे मुह वाला
सामान बिकता है |

अब दवाते कहा रही
मेरे खुद की कलम की
नोक खो गयी |

बटनो के सँसार मे
विचारो को कौन पढता है
यहा तो सब
चिट-चाट मे व्यस्त रहता है |

6 comments:

  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०९ जुलाई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति मेरा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'



    विशेष : हम चाहते हैं आदरणीय रोली अभिलाषा जी को उनके प्रथम पुस्तक प्रकाशन हेतु आपसभी लोकतंत्र संवाद मंच पर अपने आगमन के साथ उन्हें प्रोत्साहन व स्नेह प्रदान करें। 'एकलव्य'

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  2. 'बटनों का संसार भई वाह ! अब तो वो ज़माना आ गया है कि पति-पत्नी भी एक दूसरे को बटनों या रिमोट के द्वारा संचालित करना चाहते हैं. 'चिट-चैट' के ज़माने में चित्त लगाने वाली बात तो अंतर्ध्यान हो गयी है.

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  3. वाह!!बहुत खूब !!

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My love for my brother

Analyser/Observer When i am going to balance my havings, i found your side is heavier than any one else my dear brother.