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सेठजी-एक मीठा ठग

ईट , पत्थर ,रेत ,सीमेंट लाया 
इन्हे मिलाकर किला बनाया 
दीवारे रंगो से सँजायी 
इन्हे देख लोगो कि आँखे चौंधियायी |

रूप्या पैसा इतना दिखाया 
लोगो के बीच नाम कमाया 
लोग करने लगे हमरी बडाई 
हमहु बन गये सेठजी भाई |

लाल टीका माथे पर लगाया 
मुँह मे मीठा पान दबाया 
गुड की घर से कर दी  विदाई 
बाजार से शक्कर कि बोरी उठवायी |

मावा खुद ही हम खावे भाई 
जग मे बाँटे खूब झुटाई |

गरीब संग फोटो खिचवाये 
तब्हू ना हम सेल्फी किंग कहलवाये 
दिखावे का हाथ बढावे भाई 
पीठ पर लट्ठ चलावे भाई |

माल खुद ही हम दबावे भाई 
हमहु बन गये सेठजी भाई |

7 comments:

  1. भाषा में आँचलिकता का प्रभाव रोचक है। टंकण सम्बन्धी त्रुटियों को दुरुस्त कीजिये। बिन्दी को लेकर इतना उपेक्षा भाव क्यों ?

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    1. सुन्दर प्रतिक्रिया श्रीमान धन्यवाद आपका ..उपेक्षा भाव दूर करूँगा ..सुधार करूँगा

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  2. समाज में हर तबके के लोग रहते है, सभी को अपना उल्लू सिधा करना होता है .....मन में रोस लिय, सुन्दर रचना

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    1. सही कहा आपने अनिता जी ..धन्यवाद

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  3. वाह!!बहुत खूब!!👍

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