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रक्षाबंधन

आज फिर वो बचपन वाला दिन आ गया
कल रात वो सारी शरारते
मेरी आंखो से गुजर गयी
वो लकडी का घोडा
जो पापा लाये थे मेले से
उस पर तेने हक जमाया था
बालो को मेरे खीचा था
मुझे रुलाया था
मेरी आंखो के पानी से
तेरी आंखे भी भर आयी थी
अपना घोडा मुझे दे
तूने थोडा चैन पाया था
पर मे यहा क्हा रुकने वाली थी
मेने भी चिल्ला-चिल्ला कर
घर सारा सिर पर उठाया था
मारे डर के
तु भाग कर पास वाली दुकान से
मुझे चुप कराने को 
रुपये वाली चोक्लट लाया था
घोडा भीले लिया
चोक्लेट भी खा ली
फिर भी तुझे
मम्मी से पिटवाया था
कल रात वो सारी सरारते
मेरी आंखो से गुजर गयी
इस साल मेने
एक नया प्लान बनाया है
तु मुझे भूल ना पाये
इसलिये
मिठाइया दो बनायी है
एक मे नमक मिलाया है
जो तुझे पहले खिलाउन्गी
और
दुसरी मे चीनी मिलायी है 
राखी भी खुद रेशम के धागे से बनायी है
और
इस बार तो इत्वार भी है |

ये वाला रक्षाबंधन तुझे महीने भर तक याद रहेगा|
हा भाइ ऐसा भी होता है|

अभिमान

कुछ पढा
कुछ लिखा
और बडी हुई मै

देखा जमाने को
टाँग मेरी खिचते
मुझे गिराने कि कोशिश 
लाख हुई
पर तन कर 
विरोध मे 
खडी हुई मै

गैरो का क्या है 
जो नही देखते 
वो भी बोलते 
शिकायत तो अपनो से है 
जिन के साथ 
पली बडी हुई मै 

वो मेरी सोच जानते
मुझे अन्दर से
पहचानते

मुझे जिग्याषा है
मै खुद को जानु 
अपने अन्दर कि
शक्ति को पहचानु 

मेरा लक्ष्य
मेरा अभिमान है
जिसको मुझे पाना है
फर्क मुझे कुछ नही पडता
कौन दे रहा
मुझे क्या ताना है |

वफा

बोतले जाम से 
नशा कर आया हु
फिर उसकी बेवफाइयो से 
वफा कर आया हु
टूट कर
बिखर कर
सिमट कर
सम्भल कर
घर आया हु 
घर आया हु |




तुम भूल गये

कहो तो जज़्बात दिल के
रख दू तुम्हारे सिरहाने पे
चीनी घोल रखी हे इनमे
तुम्हे सपने मीठे आयेन्गे

तुम्हे लेकर
तुम्हारे बारे मे 
तुम्हारे साथ 
कही दरिया पार किये
घने बादलो की सैर की
कडकती बिजलियो पर नाचे

कहो तो इन्हे तकिया
बना दू
तुम्हे अहसास मेरा करायेन्गे

याद हे ना तुम्हे
जब बीते कुछ सालो मे
सावन का पहला सोमवार आया था
बादल भी थे नभ मे
और रिम्झिम बरखा ने हमे भीगोया था

तुम्हारे चेहरे से
कुछ शरबती बुन्दो को
मैने हटाया था 
तुम्हारी आंखो मे 
गहरा प्यार पाया था

कहो तो सब बाते दिल की
सिरहाने तुम्हारे रख दू 
तुम्हे मिठास तुम्हारी दे जायेगी |

गुमनाम

जो भी मुझसे मिला
ये सवाल कर बैठा
कि कही कुछ कसक रह सी गई है
और मै बस इतना कह पाया की 
गुमनामियो के अन्धेरो मे लोग दिखते कहा है |



व्यथा

इस डर से की तुम्हे चोट पहुचेगी
मेने खुद को रोक  लिया
करने से
जो मै
करना चाहता था |

तुमने हर बार मुझे
अपनी आंखो के आँसू दिखाये
और मैने भी देखे
शायद मै ही देख  सकता था |

तुमने मुझे अपने  आँसुओ मे बाँधा
और मेरे आँसू तुम ना देख पाये

तुमने अपनो को अपनो से
जुदा करने का हर  काम किया

तुम्हारी शय पर
अपने ही अपनो पर  नाचे
पैरो तले अपनो ने अपनो को रोन्दा|

तुमने उन्हे मन  दिया
तब तक तो ठीक था
तुम्हारा धन पाकर
उन्होने तुमको ही ठोकर मार दी |

अब अपना माथा पिटते हो
जब देखने वाले
अंदर से मर गये

मेरे सब अधिकार  छीने
मै कितना लाचार  हुआ
शरीर क्या करे
जब आत्मा ही मर जाये |