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मजबूरिया


बजाय इसके की तुम खुद आओ
किसी और को भेज देना
पैगाम लिये
तुम्हारे किसी और के होने का
तुम्हारी रुस्वाइ का
तुम्हारी विदाई का
खुद को रोक लेना
आने से
मुझको बुलाने

तुम सैलाब मेरी आंखो का देख ना पाओगी 
मेरी ये साँसे तुम्हे रोक लेगी 
जाने से

किसी और को अपनाने से
समेट लेगी तुम्हे खुद मे ही
तुम खुद को जुदा ना कर पाओगी
तुम मत आना मेरे मुकाम पर
ये मुकाम अब उस मुकाम पर पहुच चुका
कि अब इसके बाद ये बदलेगा नही

मै भी अब मान चुका
कि अब तुम फिर ना आओगी
दीये जो जला रखे थे सारे घर के
वो मेने अब बुझा दिये है
अब अन्धेरो को अपना लिया है 
हा जानता हु
ये जमाना , ये हवा 
ये आबरू
बन गयी है जंजीर तुम्हारे पाँवो की 
सब के साथ होता है 
हम कोनसे नये है 
खुली हवा मे साँस लेने को
उडना पड़ता है
अपने पंख फेलाने पडते है
अपनी भी ज़िदे  कुछ पालनी पडती है 

हा पता है मुझे 
ये मजबूत बेडिया 
दुस्मन बनी बैठी है
सब इन पर ही तो नही थोप सकते  ना
कुछ कोशिशे तो अपनी भी अधुरी है 
मेने जतन सारे कर लिये तुम्हे मनाने के
बस अब इतनी सी गुजारिश हे तुमसे
बजाय इसके की तुम खुद आओ 
किसी और को भेज देना
पैगाम तुम्हारी मुझसे रिहाई का लिये |

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