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आबो-हवा

वो दिन कब मुझे मुक़्क़मल होगा 
पलके भीग जाएगी और 
मन संतृप्त होगा 
ऐ ज़िन्दगी , अब तेरी 
आबो - हवा 
मुझे भाती नहीं 
धड़कती धड़कन भी मुझे 
सुहाती नहीं 
फिर तुझसे मिलने को 
दिन मिलना 
दुभर होगा |

6 comments:

  1. ज़िंदगी से पल पल मिलता है इंसान ... चाहे पद्म हो न हो दिर भी जीना होता है ..
    अच्छी रचना है ...

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    1. धन्यवाद Digamber ji..सही कहा आपने

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  2. पलके भीग जाएगी और
    मन संतृप्त होगा -------- बहुत खूब आदरणीय अशोक जी -- अतृप्ति की तृप्ति वह भी आसूओं से !!!!!!बहुत मर्मस्पर्शी !!!!!! सादर --

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