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भार

ज़िन्दगी को मौत से भी वीराना बना दो 
कि अब खुशी का अहसास होने ना पाये 
रूह तुम अपनी रुमानियत जला दो 
कि अब दाता की समीपता भी मर सी जाये 
ऐ शरीर तु अब सफेदी को अपना लिबास बना ले
कि अब कही काला मन तेरा दिख ना जाये 
ऐ जुबा अब मिठास को तु कडवाहट बना ले 
कि अब कही तेरे मौन का हनन हो ना पाये 
रहनुमा कि मिल्खियत एक जाल है 
हो सके तो खुदको तु अब इससे छुडाले 
कि अब भावनाये सरोबार तुझमे हो ना पाये
ज़िन्दगी को मौत से वीराना बना दो
कि अब खुशी का अहसास होने ना पाये |

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