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मेरा रोजगार


चैन का पता नही
अब आराम क्हा है
ज़िंदगी गद्दार हुई बैठी है
रातो मे
आंखे खोले सोता हु
अब ख्वाबो को आने की
इजाज़त क्हा है
आसंमा मे तारे गिन्ना
अब आदत हो गयी है
मौसम बदलने की अब
चाहत कहा है
सूखे  दरकतो के
पत्ते चुनता हु
अब होश मे आने की
हिम्मत कहा है |

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