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समझ

दिन धुआ हो गये 
राते भी काली है 
उम्मीदे मेरे घर को चली आयी 
पर मेरी जेब तो खाली है |

माँगकर सब तरफ देख लिया 
सबकी आंखे एक सवाली है 
क्या नही था तेरे पास 
जो तेरी जेब आज खाली है |

समर्थन सुख मे सब गवाया 
खुद ही लिखा 
खुद ही मिटाया |

बहकावे ने आज से बेहतर 
कल को बताया
वो हुए मालामाल 
मै खाली हाथ घर को आया |

बात अब करता हु 
जब गले तक आयी हे 
बहकावे ने अपनी लंका डुबायी है |

पर्दे पर जो दिख रहा 
तुम उसे ना मानना 
जो अन्दर से सच्चा हो 
उसे तुम जानना |

©Ashok Bamniya

13 comments:

  1. अच्छा है। टंकण पर ध्यान दें।

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    1. धन्यवाद जी . आगे से ध्यान दूँगा

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  2. सटीक चिंतन प्रस्तुत करती अभिव्यक्ति। टंकण सम्बन्धी त्रुटियों को दुरस्त करेंगे तो रचना और निखर जायेगी। शुभकामनाऐं।

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    1. धन्यवाद रविन्द्र जी , आगे से और सुधार करूँगा

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  3. माँगकर सब तरफ देख लिया
    सबकी आंखे एक सवाली है
    क्या नही था तेरे पास
    जो तेरी जेब आज खाली है ....
    बहुत ही सुंदर भावों से सजी रचना।

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    1. धन्यवाद सर आपके शब्द पढकर अच्छा लगा ..

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  4. धन्यवाद अभिलाषा जी

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