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किस्मत

किस्मत कैसी होती है 
यहा ज़िंदगी रोती है
वहा ज़िंदगी रोती है
कुछ सपने संजोती है
फिर माला मे पिरोती है
गाँठ कच्ची रह जाये तो
एक एक सपना खोती है

किस्मत केसी होती है 
यहा ज़िंदगी रोती है 
वहा ज़िंदगी रोती है 

हालातो से लड- झगड़कर 
माटी मे बीज बोती है
लहू अपना बहाती है 
औरो के लिये सोना वो उगाती है 
हाथ की रेखा जानती नही पर
माटी पर रेखा बनाती है 
जब सब कुछ अच्छा होने को हो
एक हवा का झोंका आता है
माटी सारी उड़ जाती है 
इज्जत अपनी खोती है

किस्मत केसी होती है 
यहा ज़िंदगी रोती है
वहा ज़िंदगी रोती है | 


8 comments:


  1. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 20 जून 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. धन्यवाद .... आपके लेखन को पढा. अच्छा लगा

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  2. वाह!!बहुत खूब।

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  3. वाह बहुत सुन्दर सार्थक रचना

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  4. बहुत सुन्दर....
    वाह !!!

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